टीका
  
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संज्ञा। एक जैविक पदार्थ जिसे शरीर में डाला जाता है जो शरीर को रोग से सुरक्षित करने के लिए शरीर के प्रतिरक्षा तन्त्र को प्रेरित करता है।

 

"न केवल बच्चों को टीकों की आवश्यकता होती है, परन्तु वयस्कों को भी टीकों की आवश्यकता हो सकती है। कुछ सिफ़ारिशों में सम्मिलित हैं - 'फ्लू और कुकुर खाँसी का टीका।"

 

"रोगाणु-रोधी प्रतिरोध के विरुद्ध लड़ाई में टीकों की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। टीके अनेक संक्रामक रोगों के फैलने को रोक सकते हैं और एण्टीबायोटिक्स के आवश्यकता-से-अधिक-उपयोग और दुरुपयोग को कम कर सकते हैं।"

 

सम्बन्धित शब्द

 

टीकाकरण
संज्ञा।
किसी व्यक्ति या पशु को कोई ऐसा टीका देना जो किसी रोग के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता को उत्पन्न करता है और उन्हें उस रोग से सुरक्षित करता है।

 

"टीकाकरण, शरीर की प्रतिरक्षा को किसी विशेष रोग, जैसे कि इन्फ्लूएंजा, से लड़ने के लिए तैयार करता है।"

 

"टीकाकरण शरीर के प्रतिरक्षा तन्त्र को कीटाणुओं को 'बाहरी' के रूप में पहचानने और याद रखने के लिए उद्दीप्त करता है। ताकि अगली बार जब आप उनका सामना करते हैं, तब आप बिमार नहीं होंगे।"

Learning point

टीकों की खोज और उनकी प्रभावशीलता

 

टीकाकरण का इतिहास प्रारम्भिक 10वीं शताब्दी के चीन तक मिलता है। चीनी चिकित्सकों ने प्रतिरक्षा प्रदान करने के लिए त्वचा पर चेचक के नमूनों को आलेपित किया था। यह प्रथा अफ़्रीका और तुर्की तक, और दशकों के बाद यूरोप और अमेरिका में फैली थी। एडवर्ड जेनर ने बाद में गाय के चेचक की सामग्री का मानवों में टीका लगाया और यह प्रदर्शित किया कि यह चेचक के विरुद्ध संरक्षण करने में प्रभावकारी था।[1] जेनर की खोज ने टीकाकरण की आधुनिक प्रथाओं के द्वार खोल दिए।

 

जेनर ने प्रारम्भ में देखा कि दूध-दुहने-वालों को अक्सर चेचक नहीं होता था। इस अवलोकन के परिणामस्वरूप उन्होंने 1796 में, एक दूध-दुहने-वाले के हाथों से गाय के चेचक के घावों से सामग्री को अपने माली के बेटे, जेम्स फ़िप्स, को, लड़के की बाँह को गाय के चेचक से संक्रमित धातु के साथ रगड़ कर (टीकाकरण के समान) लगाया। बाद में जेनर ने यह प्रदर्शित किया कि रोग के सम्पर्क में आने पर जेम्स को चेचक नहीं हुआ। उन्होंने अपनी खोज को 'टीकाकरण' का नाम दिया, एक गाय के लिए लैटिन शब्द (वक्का') से, और 'वैक्सीनिया', जिसका अर्थ है गाय का चेचक।

 

एण्टीबायोटिक्स और टीकाकरण के दिए जाने के बीच मुख्य अन्तर यह है कि एक एण्टीबायोटिक को शरीर में कीटाणुओं को मारने के लिए डिज़ाइन किया जाता है, या तो संक्रमण के दौरान या संक्रमण के प्रारम्भिक सम्पर्क में आने के समय पर, जबकि टीकाकरण को सामान्य तौर पर रोग के सम्पर्क में आने से पहले दिया जाता है और यह संक्रमण के प्रति पोषक की प्रतिक्रिया को उद्दीप्त करने पर निर्भर करता है। यह एक अधिक टिकाऊ दृष्टिकोण है, क्योंकि टीका प्रतिरक्षा तन्त्र को मज़बूत करता है, ताकि यह कीटाणुओं को याद रखे और उनके विरुद्ध लड़ता है, यदि शरीर को बाद के किसी समय में उनका सामना फिर से करना पड़े।

 

इसके अतिरिक्त, टीकाकरण किसी आबादी में जीवाणुजन्य और विषाणुजन्य संक्रमणों की घटनाओं को कम कर सकता है, इस प्रकार, एण्टीबायोटिक्स के समग्र उपयोग को कम कर सकता है। इसलिए, रोगाणु-रोधी प्रतिरोध के विरुद्ध लड़ने में टीकों की भी एक भूमिका है।[2]

 

टीकों के बारे में इन वीडियोज़ को देखें:

हमारा सबसे छोटा: अधिक आयु के वयस्कों के लिए टीकों का महत्व
खसरा: टीकाकरण करना है या नहीं?

 

References

1   Riedel, S. (2005). Edward Jenner and the History of Smallpox and Vaccination. Baylor University Medical Center Proceedings,18(1), 21-25. doi:10.1080/08998280.2005.11928028

2   Bloom, D. E., Black, S., Salisbury, D., & Rappuoli, R. (2018). Antimicrobial resistance and the role of vaccines. Proceedings of the National Academy of Sciences,115(51), 12868-12871. doi:10.1073/pnas.1717157115

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